Wednesday, September 1, 2010

क्यूँ नहीं खाप पंचायतों के फैसले स्वार्थी पशु स्वामियों और नगर पालिका कर्मियों पर लागु कियें जाएँ

कल जन्माष्टमी है हम सभी भगवान श्री कृष्ण की पूजा गोपालक के रूप में करते हैं परन्तु आज जो हृदय विदारक दृश्य मैंने देखा उससे इंसानियत का स्वार्थ और बेवकूफी भरा चेहरा अभी भी मेरे सामने है जब एक बस चालक ने एक गाय को टक्कर मर दी पता नहीं वो गाय जिन्दा बची होगी या नहीं ये ग्रामीण क्षेत्र से गुजरती सड़क थी अक्सर शहरो में लोगो की समझ तथा क्रिया - कलाप बहुत ही सभ्य है लेकिन जब तीन दिन पहले भीलवाडा में अचानक बीच में आई गाय की वजह से एक नेता की मौत हो गयी थी | आज गाय आशियाने की तलाश में भटकती हुई हर जगह अक्षर शहरो में तथा कस्बो में अधिकतर देखी जा सकती है जहा आज हम पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ट मानने लगे है वाही गाय को माता तथा इसमें समस्त देवी-देवताओ का वास माना जा कर भी बहुत ही उपेक्षित स्थति में छोड़ दिया गया है क्या यही हमारी संस्कृति है ?
एक समय हुआ करता था जब गाय को पूजा जाता था, आज वहीं शाम-सुबह सिर्फ दूध निकाल कर तथा दुत्कार कर उन्हें खुला ही छोड़ दिया जाता है , फिर ये आवारा घूमते पशु जहाँ दयनीय दशा में है वहीँ जान का जोखिम भी बने हुए है गाय के मल-मूत्र से कई असाध्य रोगों की उपयोगी दवाइयों का निर्माण होता है|
आज गाय का मूल्य मुआवजे या चाँद रुपयों से बढ कर कुछ नहीं है, भारत में पशु पालन का अर्थवयवस्था में अहम् स्थान है , तो वही ये खेती का मजबूत आधार भी है | ऐसे में क्या इनकी ये हालत हमारे समाज के लिए गिरते मानवीय मूल्यों की सूचक नहीं हैं ? इसके लिए वे पशु पालक प्रमुख रूप से जिम्मेदार है जो अपनी जिमेदारी सिर्फ दूध निकालने तक ही सिमित रखते है | इसके बाद अगर कोई दुर्घटना हो जाती है तो पशु मालिक बिजली की तरह आ टूट पड़ते है पशु की जान की उन्हें कोई परवाह नहीं होती है
हाल ही में कुछ राज्य सरकारों ने एक साथ प्लास्टिक की थेलियों पर प्रतिबंध लगाया ये एक बहुत ही प्रशंसनीय कदम है ,इस पर कितना प्रतिबन्ध लग पाया व्यावहारिकता ठीक इसके उलट है और इसके जिम्मेदार मोटी तनख्वाह पाने वाले नगर पालिका कर्मियों तथा पशु स्वामी है , नगर पालिका की पशु पकड़ने वाली गाड़ियाँ जंग खा रही है , तो क्या ऐसे में किसी की जन जोखिम में डालने से बहतर है क्यूँ नहीं इन पर खाप पंचायतो जेसे फैसले सामूहिक रूप से आरोपित किया जाये इससे मानवता तथा पशु प्रेम को भले बढाया नहीं जा सकता पर स्थिर रखा जा सकता है |
ऐसे में नगर पालिका ने कोई दंड आरोपित किया हो ऐसा देखने में बहुत कम आता है , अतः जन प्रतिनिधि सामाजिक कार्यकर्ता तथा जिम्मेदार प्रभुद नागरिको से इस प्रवति पर अंकुश लगाने की जिमेदारी आ पड़ती है , में जिम्मेदार नागरिक होने के नाते ऐसा करना औरआप सब के सामने लाना अपनी जिम्मेदारी समझाता हूं |आशा है इसमें सभी की भागी दारी होगी और भविष्य में हमें किसी को भी इस तरह की शिकायत नहीं होगी |
आपका
दयाशंकर मेनारिया


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