Sunday, September 5, 2010

भावी राष्ट्र निर्माता :- दयाशंकर मेनारिया

हमारे विचार वजह है
आप जेसे विचार का बीज बोते है
वैसा ही कर्म फलता है
कर्म का बीज बोने पर
आदत वेसी ही फलती है
आदत का बीज बोने पर
चरित्र वैसा ही फलता है
चरित्र का बीज बोने पर
किस्मत वैसी ही फलती है



इन सब की शुरुआत एक विचार से होती है |
little eyes upon yon
नन्ही आँखों के घेरे में

रात और दिन दो नन्ही आँखे देखे तुझे
तेरे हर शब्द पर उसके कान लगे है
उसके छोटे हाथ चाहे तुझसा ही करना
खवाबो में ही देखे वो तुझसा ही बनना
सबसे बुद्धिमान तुम उसके आदर्श बने हो
रति भर संदेह नहीं है उसके तुझ पर
भक्ति भाव से करता है विशवास वो तुज पर
तेरी कथनी करनी ही सवार है उसपर
तुज सा गर कहे करेगा ,
तभी तो बन पायेगा गा तुझसा
आशचर्य चकित वो नन्हा मुन्ना
करे अटूट विशवास तू पर
उसकी आँखे दिन रात तके है
बनाये राह
अपने नित्य कर्म से
उसके लिए जो इंतजार में है
बड़ा होकर तूझ सा बनने की

दोस्तों में आज अपनी शुरुवात के फोकस में भव्य राष्ट्र निर्माता यानि की बच्चो को लेकर कुछ कहना चाहता हूं उसके पहले में उनके भविष्य तथा वर्तमान आधार चाहे वो स्कूल परिवार , समाज , राष्ट्र , या फिर प्रमुख रूप से अभिभावकों का अमूल्य योगदान कहा जाये को लेकर शुरू करता हूं , कहा जाता है की माँ की वो दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविधालय होता है , तथा राष्ट्र की भावी तरकी उस देश की भावी पीढ़ी की शिक्षा संस्कारो या फिर आधुनिक रूप में व्यवहारिक या वास्तविक रूप से अनुभव किया जाये तो मात्र साक्षरता दर से नापी जाती है , आज भारत में प्रति वर्ष लाखो स्नातक प्रति वर्ष तेयार हो जाते है बीच बीच में ऐसी खबरे भी पड़ने को मिलती है की फलाना कॉलेज में रंगिंग की घटना हुई , तो कही मारपीट की घटना हुई आदि मनोवैज्ञानिक रूप से इनका आधार क्या है ?

शायद यही की इनका बचपन जब वो एक कोरा कागज की तरह होता है जिसमे अभिभावक बचचों को समय नहीं दे पाते है , छुट्टी के दिन पिकनिक पर ले जाके इति श्री कर लेते है , क्या हम इन्हें समझने का प्रयास करते है ? अधिकतर नहीं अबोध बालक की आँखों में अनगिनत आशाएं संभावनाएं होती है में इस से भी कुछ जयादा मानता हूं पर काम , पेसे कमाने या बाते करने के आलावा क्या हम ये कर सकते है ? अच्छा ठीक है क्या भावी पीढ़ी को साक्षर बनाना चाहते है , या शिक्षित ? क्या आज आप की व्यस्तता आप की उम्र के ऊँचे ढलान में आप का भविष्य सुरक्षित रखेगी ? क्या आप अछे अभिभावक या जिमेदार अभिभावक है या आदर्श अभिभावक है , ये में नहीं पर भावी माता पिता आप से आप के जवाब जानना चाहते है ?



:- दयाशंकर मेनारिया

Wednesday, September 1, 2010

क्यूँ नहीं खाप पंचायतों के फैसले स्वार्थी पशु स्वामियों और नगर पालिका कर्मियों पर लागु कियें जाएँ

कल जन्माष्टमी है हम सभी भगवान श्री कृष्ण की पूजा गोपालक के रूप में करते हैं परन्तु आज जो हृदय विदारक दृश्य मैंने देखा उससे इंसानियत का स्वार्थ और बेवकूफी भरा चेहरा अभी भी मेरे सामने है जब एक बस चालक ने एक गाय को टक्कर मर दी पता नहीं वो गाय जिन्दा बची होगी या नहीं ये ग्रामीण क्षेत्र से गुजरती सड़क थी अक्सर शहरो में लोगो की समझ तथा क्रिया - कलाप बहुत ही सभ्य है लेकिन जब तीन दिन पहले भीलवाडा में अचानक बीच में आई गाय की वजह से एक नेता की मौत हो गयी थी | आज गाय आशियाने की तलाश में भटकती हुई हर जगह अक्षर शहरो में तथा कस्बो में अधिकतर देखी जा सकती है जहा आज हम पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ट मानने लगे है वाही गाय को माता तथा इसमें समस्त देवी-देवताओ का वास माना जा कर भी बहुत ही उपेक्षित स्थति में छोड़ दिया गया है क्या यही हमारी संस्कृति है ?
एक समय हुआ करता था जब गाय को पूजा जाता था, आज वहीं शाम-सुबह सिर्फ दूध निकाल कर तथा दुत्कार कर उन्हें खुला ही छोड़ दिया जाता है , फिर ये आवारा घूमते पशु जहाँ दयनीय दशा में है वहीँ जान का जोखिम भी बने हुए है गाय के मल-मूत्र से कई असाध्य रोगों की उपयोगी दवाइयों का निर्माण होता है|
आज गाय का मूल्य मुआवजे या चाँद रुपयों से बढ कर कुछ नहीं है, भारत में पशु पालन का अर्थवयवस्था में अहम् स्थान है , तो वही ये खेती का मजबूत आधार भी है | ऐसे में क्या इनकी ये हालत हमारे समाज के लिए गिरते मानवीय मूल्यों की सूचक नहीं हैं ? इसके लिए वे पशु पालक प्रमुख रूप से जिम्मेदार है जो अपनी जिमेदारी सिर्फ दूध निकालने तक ही सिमित रखते है | इसके बाद अगर कोई दुर्घटना हो जाती है तो पशु मालिक बिजली की तरह आ टूट पड़ते है पशु की जान की उन्हें कोई परवाह नहीं होती है
हाल ही में कुछ राज्य सरकारों ने एक साथ प्लास्टिक की थेलियों पर प्रतिबंध लगाया ये एक बहुत ही प्रशंसनीय कदम है ,इस पर कितना प्रतिबन्ध लग पाया व्यावहारिकता ठीक इसके उलट है और इसके जिम्मेदार मोटी तनख्वाह पाने वाले नगर पालिका कर्मियों तथा पशु स्वामी है , नगर पालिका की पशु पकड़ने वाली गाड़ियाँ जंग खा रही है , तो क्या ऐसे में किसी की जन जोखिम में डालने से बहतर है क्यूँ नहीं इन पर खाप पंचायतो जेसे फैसले सामूहिक रूप से आरोपित किया जाये इससे मानवता तथा पशु प्रेम को भले बढाया नहीं जा सकता पर स्थिर रखा जा सकता है |
ऐसे में नगर पालिका ने कोई दंड आरोपित किया हो ऐसा देखने में बहुत कम आता है , अतः जन प्रतिनिधि सामाजिक कार्यकर्ता तथा जिम्मेदार प्रभुद नागरिको से इस प्रवति पर अंकुश लगाने की जिमेदारी आ पड़ती है , में जिम्मेदार नागरिक होने के नाते ऐसा करना औरआप सब के सामने लाना अपनी जिम्मेदारी समझाता हूं |आशा है इसमें सभी की भागी दारी होगी और भविष्य में हमें किसी को भी इस तरह की शिकायत नहीं होगी |
आपका
दयाशंकर मेनारिया


Sunday, August 29, 2010

साथी हाथ बढाना ...........


दोस्तों मुझे ये कहते  हुए बहुत ख़ुशी  हो रही है की मुझे आपसे जुड़ने तथा  आपसे बातें करने के लिए ब्लॉग्गिंग का  बहुत  शानदार   प्लेटफोर्म  मिला  है दोस्तों में चाहता हूँ की हम निजी भावनाओं विचारों के  साथ उन चीजों को भी विशेष अहमियत दें जो हमारे आस पास घटित हो रही है चाहे वह रुरल , पोलिटिक्स या नेशनल लेवल की कोई वार्ता हो मुद्दे  या घटनाएँ या फिर ज्वलंत  मुद्दे जो आज एक अंकुर के रूप में हैं, ना जाने  हमें भविष्य में किस दिशा में ले जायेंगे या फिर हम किस तरह का भविष्य निर्माण करना चाहतें  हैं , क्या हम वर्त्तमान स्तिथी से संतुस्ट  हैं या फिर बदलाव हेतु तैयार हैं यदि हां तो यह बदलाव कब कैसे व कौन ला सकता हैं इस हेतु हम हमारे जीवन का कोई भी वैचारिक  पहलु  इस  ब्लॉग्गिंग के माध्यम से छुए बिना नहीं रहेंगे चाहे  वह राजनितिक , अर्थव्यस्था , शिक्षा , अपराध, नैतिकता ,सामाजिक, प्रतिमान ,संस्कृति या किसी भी क्षेत्र में क्या- क्या हो रहा है के बारे में आपके विचार आमंत्रित करता हूं मुझे विश्वास है आप बेबाकी के साथ पुरे जोश और  अपने को ब्लॉग की दुनिया में प्रतिष्ठित करेंगे दोस्तों यह तो एक शुरुआत है ,
मुझे आपके प्रत्युतर की प्रतीक्षा है ,सकारात्मक रूप से मैं आपके विचार कुछ इस तरह जानना चाहता हूं | की


उतेजित इन्सान की कोई हद नहीं होती वो उत्तेजना से व्याकुल हो उठता है  |
तथा किसी भी अड़चन की परवाह नहीं करता व अंतिम हद तक पहुंचा चला जाता है  ||
http://saadhanamaargam.com/%5CGodsImages%5CDevi%5CBharatMata.jpg
दोस्तों  बस एक पहल करने की जरुरत है कड़ियाँ तो अपने आप जुडती चली जाएँगी ,  एक कविता  जिसे में आपके साथ बांटना चाहता हूं  |


मैंने जिंदगी से चवन्नी का सौदा किया
और जिंदगी ने मुझे उससे  ज्यादा नहीं दिया
हालांकि जब शाम को मैंने अपनी मजदूरी गिनी तो
मैंने और ज्यादा पैसे मांगे

जिंदगी एक न्यायप्रिय मालिक है
यह उतना ही देती है जितना आप मांगते है
परन्तु एक बार जब आप अपनी मजदूरी तय कर लेते हैं
तो फिर आपको उतने  पर ही काम  करना पड़ता है
मैं एक मजदुर की पगार पर काम  करता रहा
मैंने यही सिखा और सोचकर निराश हुआ की
मैं जिंदगी से जो भी मांगता 
जिंदगी मुझे वही  ख़ुशी- ख़ुशी दे देती


दोस्तों मैंने एक कड़ी जोड़ दी है आपके जोड़ने का इंतज़ार  है |
 आपका अपना
 दयाशंकर मेनारिया

२९-८-२०१० 




Friday, August 27, 2010

एक क्रांतिकारी कदम

नमस्कार साथियों ,

                            मैं  दयाशंकर अपनी   नैसर्गिक  भावनाएं एवं  विचार आप तक तक पहूंचाने के लिए इस ब्लॉग्गिंग की दुनियां में आहिस्ता आहिस्ता पहला  कदम रख रहा हूं , आशा है कि आप अपना  सहयोग मुझे अनुज  की भांति सदैव  देते रहेंगे , इस ब्लॉग के जरियें  मै वक्त बे वक़्त आप तक अपने दिली जज्बात को पंहुचाता  रहूँगा  |


 आपका अपना दयाशंकर मेनारिया , करसाना  जिला. चित्तौडगढ़ मेवाड़ आँचल  |

एक क्रांतिकारी विचारक 

 दयाशंकर मेनारिया