
आप जेसे विचार का बीज बोते है
वैसा ही कर्म फलता है
कर्म का बीज बोने पर
आदत वेसी ही फलती है
आदत का बीज बोने पर
चरित्र वैसा ही फलता है
चरित्र का बीज बोने पर
किस्मत वैसी ही फलती है
इन सब की शुरुआत एक विचार से होती है |
little eyes upon yon
नन्ही आँखों के घेरे में
दोस्तों में आज अपनी शुरुवात के फोकस में भव्य राष्ट्र निर्माता यानि की बच्चो को लेकर कुछ कहना चाहता हूं उसके पहले में उनके भविष्य तथा वर्तमान आधार चाहे वो स्कूल परिवार , समाज , राष्ट्र , या फिर प्रमुख रूप से अभिभावकों का अमूल्य योगदान कहा जाये को लेकर शुरू करता हूं , कहा जाता है की माँ की वो दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविधालय होता है , तथा राष्ट्र की भावी तरकी उस देश की भावी पीढ़ी की शिक्षा संस्कारो या फिर आधुनिक रूप में व्यवहारिक या वास्तविक रूप से अनुभव किया जाये तो मात्र साक्षरता दर से नापी जाती है , आज भारत में प्रति वर्ष लाखो स्नातक प्रति वर्ष तेयार हो जाते है बीच बीच में ऐसी खबरे भी पड़ने को मिलती है की फलाना कॉलेज में रंगिंग की घटना हुई , तो कही मारपीट की घटना हुई आदि मनोवैज्ञानिक रूप से इनका आधार क्या है ?
शायद यही की इनका बचपन जब वो एक कोरा कागज की तरह होता है जिसमे अभिभावक बचचों को समय नहीं दे पाते है , छुट्टी के दिन पिकनिक पर ले जाके इति श्री कर लेते है , क्या हम इन्हें समझने का प्रयास करते है ? अधिकतर नहीं अबोध बालक की आँखों में अनगिनत आशाएं व संभावनाएं होती है में इस से भी कुछ जयादा मानता हूं पर काम , पेसे कमाने या बाते करने के आलावा क्या हम ये कर सकते है ? अच्छा ठीक है क्या भावी पीढ़ी को साक्षर बनाना चाहते है , या शिक्षित ? क्या आज आप की व्यस्तता आप की उम्र के ऊँचे ढलान में आप का भविष्य सुरक्षित रखेगी ? क्या आप अछे अभिभावक या जिमेदार अभिभावक है या आदर्श अभिभावक है , ये में नहीं पर भावी माता पिता आप से आप के जवाब जानना चाहते है ?
:- दयाशंकर मेनारिया
वैसा ही कर्म फलता है
कर्म का बीज बोने पर
आदत वेसी ही फलती है
आदत का बीज बोने पर
चरित्र वैसा ही फलता है
चरित्र का बीज बोने पर
किस्मत वैसी ही फलती है
इन सब की शुरुआत एक विचार से होती है |
little eyes upon yon
नन्ही आँखों के घेरे में
रात और दिन दो नन्ही आँखे देखे तुझे
तेरे हर शब्द पर उसके कान लगे है
उसके छोटे हाथ चाहे तुझसा ही करना
खवाबो में ही देखे वो तुझसा ही बनना
सबसे बुद्धिमान तुम उसके आदर्श बने हो
रति भर संदेह नहीं है उसके तुझ पर
भक्ति भाव से करता है विशवास वो तुज पर
तेरी कथनी करनी ही सवार है उसपर
तुज सा गर कहे करेगा ,
तभी तो बन पायेगा गा तुझसा
आशचर्य चकित वो नन्हा मुन्ना
करे अटूट विशवास तू पर
उसकी आँखे दिन रात तके है
बनाये राह
अपने नित्य कर्म से
उसके लिए जो इंतजार में है
बड़ा होकर तूझ सा बनने की
तेरे हर शब्द पर उसके कान लगे है
उसके छोटे हाथ चाहे तुझसा ही करना
खवाबो में ही देखे वो तुझसा ही बनना
सबसे बुद्धिमान तुम उसके आदर्श बने हो
रति भर संदेह नहीं है उसके तुझ पर
भक्ति भाव से करता है विशवास वो तुज पर
तेरी कथनी करनी ही सवार है उसपर
तुज सा गर कहे करेगा ,
तभी तो बन पायेगा गा तुझसा
आशचर्य चकित वो नन्हा मुन्ना
करे अटूट विशवास तू पर
उसकी आँखे दिन रात तके है
बनाये राह
अपने नित्य कर्म से
उसके लिए जो इंतजार में है
बड़ा होकर तूझ सा बनने की
दोस्तों में आज अपनी शुरुवात के फोकस में भव्य राष्ट्र निर्माता यानि की बच्चो को लेकर कुछ कहना चाहता हूं उसके पहले में उनके भविष्य तथा वर्तमान आधार चाहे वो स्कूल परिवार , समाज , राष्ट्र , या फिर प्रमुख रूप से अभिभावकों का अमूल्य योगदान कहा जाये को लेकर शुरू करता हूं , कहा जाता है की माँ की वो दुनिया का सबसे बड़ा विश्वविधालय होता है , तथा राष्ट्र की भावी तरकी उस देश की भावी पीढ़ी की शिक्षा संस्कारो या फिर आधुनिक रूप में व्यवहारिक या वास्तविक रूप से अनुभव किया जाये तो मात्र साक्षरता दर से नापी जाती है , आज भारत में प्रति वर्ष लाखो स्नातक प्रति वर्ष तेयार हो जाते है बीच बीच में ऐसी खबरे भी पड़ने को मिलती है की फलाना कॉलेज में रंगिंग की घटना हुई , तो कही मारपीट की घटना हुई आदि मनोवैज्ञानिक रूप से इनका आधार क्या है ?
शायद यही की इनका बचपन जब वो एक कोरा कागज की तरह होता है जिसमे अभिभावक बचचों को समय नहीं दे पाते है , छुट्टी के दिन पिकनिक पर ले जाके इति श्री कर लेते है , क्या हम इन्हें समझने का प्रयास करते है ? अधिकतर नहीं अबोध बालक की आँखों में अनगिनत आशाएं व संभावनाएं होती है में इस से भी कुछ जयादा मानता हूं पर काम , पेसे कमाने या बाते करने के आलावा क्या हम ये कर सकते है ? अच्छा ठीक है क्या भावी पीढ़ी को साक्षर बनाना चाहते है , या शिक्षित ? क्या आज आप की व्यस्तता आप की उम्र के ऊँचे ढलान में आप का भविष्य सुरक्षित रखेगी ? क्या आप अछे अभिभावक या जिमेदार अभिभावक है या आदर्श अभिभावक है , ये में नहीं पर भावी माता पिता आप से आप के जवाब जानना चाहते है ?
:- दयाशंकर मेनारिया
नैतिक शिक्षा की कमी महसूस होती है ।
ReplyDeleteदयाशंकर जी, आपरा विचार और लेख में उठाया गया सवाल आज री पीढ़ी रा अभिभावक रे लिए गौर करबा लायक है, आपरे इणी लेख सु सम्बंधित एक लिंक भी भेज रह्यो हु, ब्लॉग लिखवा रे लिए आपने घणी घणी शुभकामना.
ReplyDeletehttp://thatshindi.oneindia.in/news/2009/10/23/1256241209.html
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ReplyDeleteदयाशंकर जी ,
बहुत ही ज्वलंत समस्या की तरफ ध्यान दिलाया है आपने। माता-पिता चाहे लितने भी व्यस्त क्यूँ न हों , अपनी संतान के लिए वक़्त निकालना ही चाहिए।
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आप बहुत अच्छा लिखते हैं!
ReplyDeleteनियमितरूप से लिखते रहिए!